वहाँ कौन है तेरा
रमेश जैसे ही अपनी केबिन में कुर्सी पर बैठने लगा कि अचानक चपरासी मुनीराम ने उसे प्रणाम करते हुए कहा " विकास बाबू आपको बुला रहे हैं" रमेश तुरंत विकास के केबिन की ओर चल पड़ा । विकास बहुगुणा इस बहुगुणा एन्ड बहुगुणा कंपनी का मालिक था जो लकड़ी के कीमती फर्नीचर बनाती थी । रमेश यानि रमेश पंत विकास के स्वर्गीय पिता जानकी वल्लभ के ख़ास आदमी थे इसीलिए विकास रमेश को अपने पिता की तरह सम्मान देता था । रमेश को इस कंपनी में काम करते हुए तीस साल हो चुके थे ।
रमेश विकास की केबिन में पहुंचा तो विकास ने उठकर रमेश को हाथ जोड़ प्रणाम किया और दोनों बैठ गए । विकास बोला " अंकलजी मैं पिछले दो दिन से आपके बारे में ही सोच रहा था । आप करीब 2 महीने काफी बीमार रहे । कमजोरी भी बहुत आ गई है । आप को काम से बेहद लगाव है इसलिए आप मेरे मनाने के बावजूद रिटायर भी नहीं होना चाहते । मेरे दिमाग में इस मसले का एक हल आया है । हमारी 3 आरा मीलों में से एक आरा मिल रानीखेत के देवताल गाँव में भी है जो कि पहाड़ी क़स्बा है और हवा पानी भी शुद्ध है । आप वहाँ का काम काज संभाल लीजिये । आप व्यस्त भी रहोगे और आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा । आपका क्या ख़याल है इसके बारे में?"
देवताल का नाम सुनते ही रमेश सिहर गया और एक बिजली सी उसके शरीर में दौड़ने लगी । कुछ देर खामोश रहने के बाद वो बोला " ठीक है जैसा तुम उचित समझो । मुझे भी मंज़ूर है । "
विकास अपनी जगह से उठा आगे आकर उसने रमेश के पैर छुए और बोला " अंकलजी आप पापा की जगह हो । आपका साथ और आपका अनुभव हमेशा मेरे साथ रहे मैं यही चाहता हूँ । आप इसी रविवार वहाँ रवाना हो जाईये । मैं अपनी आरा मिल के मेनेजर को सन्देश किये देता हूँ आपके घर का इंतज़ाम कर देगा ।" रमेश घर लौट आया । वो सारी रात सो नहीं पाया ।
जब वो लेटा तो करीब 30 साल पुरानी बातें किसी फ़िल्म की तरह उसकी आँखों के सामने आने लगी ।
रानीखेत के पास का एक छोटा सा गाँव देवताल । देवताल में रामलाल अकेला ही दूधवाला था जो गाँव के कुछ गिनेचुने घरों में दूध देता था । रामलाल का एक ही बेटा था रमुआ यानि रमेश जो की करीब 16 साल का था । रामलाल की पत्नी रमुआ के जन्म के दिन ही इस दुनिया से चली गई थी । रमुआ सभी जगह दूध देने जाता मगर गाँव के सरपंच प्रताप सिंह के यहां रामलाल खुद ही जाता क्योंकि ऐसा प्रताप सिंह का आदेश था । एक बार रामलाल बीमार हो गया तो रमुआ सरपंच के यहां दूध देने गया । सरपंच को रामलाल के बीमार होने की खबर मिल गई थी इसलिए रमुआ को आने की इजाजत मिल गई थी । रमुआ दूसरे दिन जब दूध देने आया तो सरपंच की बेटी बेला घर पर थी और वही दूध लेने आई । बेला बहुत सुन्दर थी । उसकी उम्र 20 के आसपास थी और फिल्मों में हिरोईन बनने के सपने देखना फ़िल्मी पत्रिकाएं मंगवाकर पढ़ना और उसमें छपी हीरोइनों की तस्वीरों को देखकर हीरोइनों की नक़ल करना उसके शौक थे ।
बेला ने रमुआ को देखा । रमुआ था 16 साल का मगर हट्टा कट्टा था और 20 - 21 साल के नौजवान की तरह दिखता था । अच्छी सेहत होने की वजह से खूबसूरत भी दिखाई देता था । बेला पहली बार में ही उस पर मोहित हो गई । वो रमुआ से बार बार मिलने के बहाने ढूंढती । उससे मिलती । कभी उसे अपने साथ बिठाकर फिल्मों की बातें करती फ़िल्मी पत्रिकायें दिखलाती और हिरोईन बनने के अपने सपनों के बारे में उसे बताती । रमुआ सीधा सादा लड़का था । वो चुपचाप बेला की बातें सुनता और हाँ हूँ में ही जवाब देता रहता । बेला ने एक दिन रमुआ को कह दिया कि वो उसे चाहने लगी है । रमुआ घबरा गया । वो बेला से दूर दूर रहने लगा । एक दिन रामलाल अपने एक रिश्तेदार के देहांत के कारण पड़ोस के गाँव जाना पड़ा तो रमुआ सभी जगह दूध देने गया । बेला के यहां भी गया । बेला ने रमुआ से माफ़ी मांगते हुए कहा " तू उस दिन की बात से मेरे से नाराज़ हो गया ना । चल उस बात को भूल जा । वो तो मैंने एक पिक्चर का डायलॉग तुझे सुनाया था पगले ।" रमुआ भोला था वो तुरंत मान गया । बेला ने उसे बैठने को कहा और उससे बातें करने लगी । बातें करते करते एक दो बार उसने रमुआ के हाथ अपने हाथ में ले लिए । रमुआ ठिठककर दूर हो गया । इसके बाद एक दो मौके और ऐसे आये जब रमुआ दूध देने गया और बेला ने उसे कभी कहीं चुपके से छू लिया कभी उसके गालों पर अपने हाथ रख दिए । रमुआ सावधान हो गया और उससे बहुत दूर खड़ा होने लगा दूध देते वक़्त । बेला समझ गई कि रमुआ इतनी आसानी से उसके काबू में नहीं आने वाला ।
एक दिन बेला ने अपने एक नौकर की मदद से रमुआ को अपने घर के पिछवाड़े बुलाया और उससे लिपट गई । रमुआ उसे धक्का देकर घर भाग आया । वो इतना घबराया कि अगले दो दिन घर से बाहर तक नहीं निकला ।
एक बार ऐसा हुआ कि सरपंच का परिवार किसी शादी में रानीखेत गया तो बेला अकेली अपनी दादी के साथ घर ही ठहर गई कोई बहाना करके । बेला ने चाल चलकर रमुआ को बातों में फंसाकर अपने नौकर के साथ दूध लेकर बुला लिया कि दादी माँ के लिए दूध चाहिए । रमुआ दूध देकर जाने को हुआ तो बेला के नौकर ने उसे शरबत का ग्लास दिया और कहा पीलो इसे दादी माँ ने भेजा है । रमुआ शरबत पी गया । पीते ही उसे नशा सा होने लगा । बेला ने रमुआ का हाथ पकड़ा और अपने कमरे में ले आई ।
सवेरे आँख खुली तो रमुआ अपने घर के पिछवाड़े जमीन पर लेटा हुआ था । उसके कपडे अस्त व्यस्त थे । उसे कुछ याद नहीं आया कि आखिर वो यहां कैसे आया और उसकी ये हालत कैसे हुई ? उसे सिर्फ शरबत पीने तक की बात याद आई ।
इसके बाद रमुआ कभी सरपंच के घर नहीं गया और उसने रामलाल को बेला की हरकतों के बारे में सब बता दिया ।
कुछ महीने बीते कि सरपंच को पता चला कि बेला माँ बनने वाली है । उसकी आँखों में खून उतर आया । बेला की खूब पिटाई हुई मगर बेला कुछ नहीं बोली ।
सरपंच ने अपने नौकरों से भी पता करवाया मगर कुछ पता नहीं चल सका । एक दिन बेला का वो ख़ास नौकर बेला की इस हालत से दुखी होकर सरपंच के सामने सब उगल गया । सरपंच ने पहले तो उसकी खूब पिटाई की । फिर बेला की पिटाई करने को हुआ तो बेला की दादी ने उसे डांटते हुए कहा " कुसूर उस दो कौड़ी के दूध वाले की औलाद का और मार मेरी पोती को पड़े मैं ऐसा नहीं होने दूंगी " सरपंच आग बबूला हो उठा । उसने अपने लठैतों को साथ लिया और रामलाल के घर की तरफ चल पड़ा । बेला का वो नौकर अब रामलाल के घर भागते हुए गया और उसने सारी बात रामलाल को बता दी । रामलाल और रमुआ थर थर कांपने लगे । उस नौकर ने कहा " रामू दादा आप तो रमुआ के साथ यहां से भाग निकलो वरना सरपंच तो आप दोनों को मार डालेगा ।"
रामलाल को कुछ नहीं सूझा । उसने रमुआ का हाथ पकड़ा और घर से निकालकर भागने लगा । दोनों कुछ ही दूर भागे थे कि सरपंच के कुछ लठैतों ने उन्हें देख लिया । दोनों घबराकर इधर उधर देखने लगे । रामलाल बेहद घबरा गया और कांपने लगा । उसके पाँव जैसे वहीँ जम गए । रमुआ ने रामलाल को एक बड़े पेड़ के पीछे छुपने को कहा और बोला " बापू तुम यहीं छुप जाओ मैं भागता हूँ तुम यहीं छुपे रहना । जब ये लोग यहां से दूर चले जाएंगे तब मैं वापस यहीं आ जाऊंगा " रामलाल ने हाँ कर दी । रमुआ सरपट सड़क पर दौड़ने लगा । सभी लठैत उसके पीछे भागने लगे ।
लठैत बहुत तेज निकले रमुआ थकने लगा था । अचानक रमुआ को कुछ दूर एक ट्रेक्टर दिखाई दिया जिसमे लकड़ियाँ लदी हुई थी । वो लठैतों को चकमा देकर उस ट्रेक्टर में लकड़ियों के बीच में छुप गया । कुछ देर बाद ट्रेक्टर चल पड़ा ।
बेहद थका होने से रमुआ सो गया । जब उसकी आँख खुली तो ट्रेक्टर एक शहर में दाखिल हो रहा था । ट्रेक्टर एक लकड़ी के गोदाम में आकर रुक गया । रमुआ ट्रेक्टर की ट्रॉली से नीचे उतरा तो उसे वहाँ के चौकीदार ने देखा और उसे पकड़कर उस लकड़ी के फर्नीचर के कारखाने के मालिक के सामने लाकर खड़ा कर दिया । मालिक का नाम था सेठ कृष्ण वल्लभ । रमुआ ने सारी बात बता दी । सेठ जी ने उसकी आँखों के आंसू पौंछे और उसी गोदाम के पीछे एक कच्चे घर में उसे रहने को कह दिया ।
अगले दिन रमुआ को सेठ जी के कहने से उसी कारखाने में काम पर रख लिया गया । रमुआ को अपने बापू की चिंता ने बेचैन कर रखा था । वो सेठ जी से कहकर अपने गाँव रवाना हुआ । चोरी चुपके वो गाँव में दाखिल हुआ । थोड़ी ही दूर चलने पर उसका एक दोस्त मिला जिसने बताया कि उसके बापू की तलाश सरपंच के आदमी अभी भी कर रहे हैं । रमुआ अपने दोस्त के साथ उस जगह आया जहां वो अपने बापू को छोड़कर गया था । वहाँ रामलाल नहीं मिला । रमुआ ने आसपास बने झोंपड़ों में पता किया तो किसी ने भी रामलाल की कोई जानकारी होने से मना किया । लगातार 3 दिन आसपास के गाँवों में अपने बापू की तलाश कर के वो हताश हो गया और हारकार वापस शहर के उस लकड़ी के कारखाने में लौट आया ।
सेठ जी ने उसे काम करने और पास ही शाम को लगने वाली स्कूल जाने को कहा जिससे वो कुछ लिख पढ़ सके । रमुआ पूरी लगन से दोनों कामों में लग गया ।
सेठजी का लड़का जानकी वल्लभ रमुआ से करीब 5 साल बड़ा था और सेठजी के काम में हाथ बंटाता था । जल्दी ही रमुआ और जानकी वल्लभ में गहरी दोस्ती हो गई ।
रमुआ मेहनती निकला और पढ़ाई में होशियार भी । जल्दी ही उसने दसवीं पास की और जानकी वल्लभ ने उसे लकड़ी के कारखाने की सुपरवाइजरी के साथ साथ रोज रोज के खर्चे का हिसाब किताब देखना सिखला दिया ।
इस बीच रमुआ से उसका वो ही दोस्त शहर आकर एक बार मिला और दुखद खबर दी कि रामलाल अब इस दुनिया में नहीं रहा । वो बहुत बीमार था और पास ही के एक गाँव में सबसे छुपकर रहने के कारण अपना इलाज ठीक से न करवा पाने से कुछ हफ्ते हुए चल बसा । रमुआ टूट गया । बहुत रोया । सेठजी और जानकी वल्लभ ने उसे संभाला और हर तरह से हिम्मत बंधवाई ।
कुछ साल बीते और सेठजी का देहांत हो गया । अब जानकी वल्लभ सभी कामकाज देखने लगा । रमुआ उसका ख़ास दोस्त और सहायक हो चुका था । रमुआ अब अपने बीते वक़्त को भूल चुका था और मेहनत लगन से अपने काम में लगा था । उसने एक प्रण कर लिया अपने बापू के असमय निधन से कि वो अकेला ही रहेगा और अपना घर नहीं बसाएगा । बेला के कारण उसे औरत नाम से ही डर सा लगने लगा था ।
कुछ अरसे के बाद जानकी वल्लभ एक दुर्घटना का शिकार हो गया और विकास एक तरह से रमुआ के भरोसे रह गया । रमुआ विकास को अपने बेटे की तरह ही चाहता था और उसका पूरा ख्याल रखता था । इसी तरह से वक़्त गुज़रने लगा ।
एक दिन रमुआ को सीने में दर्द की शिकायत हुई । बेचैनी महसूस हुई । विकास ने तुरंत उसे अस्पताल में भर्ती करवाया । डॉक्टर ने जांच के बाद हलके दिल के दौरे की बात कही और साथ ही ये हिदायत भी दी कि आराम अधिक करें काम कम करें और अधिक तनाव न झेलें । इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर विकास ने रमुआ काका को रानीखेत के देवताल गाँव भेजने का फैसला किया । पहाड़ी क़स्बा होने से शुद्ध हवा पानी और आरा मिल में काम भी कम रहेगा । लेकिन विकास को ये नहीं पता था कि रमुआ की ज़िन्दगी में देवताल इलाके का क्या स्थान है और क्या क्या जुड़ा हुआ है ।
रमुआ रात भर सो नहीं सका । उसके मन में अपने अतीत अपने गाँव को लेकर कई सवाल आने लगे ।
गाँव में अब कौन कौन होगा ? सरपंच बेला लठैत और गाँव के लोगों में से कौन कौन वहाँ होगा ? फिर उसने ये सोच कर कि वो तो रानीखेत में रहेगा और 30 साल बाद गाँव में सबकुछ बदल चुका होगा उसने रानीखेत जाने की तैयारी कर ली ।
विकास खुद रमुआ को अपनी कार में देवताल छोड़ने गया । आरा मिल से थोड़े से पैदल रास्ते पर ही एक घर किराए पर लेकर तैयार था रमुआ के लिए । 30 साल बाद रमुआ फिर से पहाड़ों पेड़ों और खुली हवा के बीच खुद को पाकर बहुत खुश हो गया । उसे यकीन हो गया कि अब उसकी उम्र बहुत लंबी हो गई है और दिल की बिमारी बहुत दूर हो चुकी है ।
पहली सुबह रमुआ उठा और सारे गाँव का चक्कर लगाने निकल पड़ा । हर रास्ता जाना पहचाना लगा । क्यों न लगता उसकी जन्मभूमि थी । बचपन का गाँव बचपन की बातें सब याद आने लगा उसे ।
अब वो उस जगह आ पहुंचा जहां कभी उसका घर हुआ करता था । उसने देखा वो जगह एकदम उजाड़ हो गई थी । उसका कच्चा घर सुनसान था । खिड़की दरवाजों में झाड़ियाँ उग आई थी । घर के पिछवाड़े में जहां गायें बाँधी जाती थी वहाँ अब जंगली पेड़ उगे हुए थे । वो अपने घर के सामने के पेड़ के नीचे खड़ा था और बीते दिनों की यादों में खो गया ।
जब रमुआ काफी देर तक घर न लौटा तो उसका नौकर उसे ढूंढता हुआ उस तक पहुँच गया । रमुआ उसकी आवाज़ सुनकर यादों में से बाहर निकल आया । उसका नौकर बोला ' ये रामलाल का घर हुआ करता था । बरसों पहले वो चल बसा । उसका बेटा सुना है सरपंच के डर से शहर भाग गया । बहुत जालिम था सरपंच । जैसे करम किये वैसा ही फल मिला । 3 साल बिस्तर में पड़ा रहा और बड़ी मुश्किल से सांस उखड़ी ।" रमुआ अपने आंसू पौंछते हुए बोला " चलो घर चलते हैं । हरेक को अपने कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है ।"
रमुआ आरा मिल में आराम से अपना काम देखने लगा । सुबह शाम गाँव का चक्कर लगाता । दोनों वक़्त वो अपने घर के सामने से होकर जरूर निकलता और पल दो पल रुक जाता । एक दिन वो कुछ आगे निकलकर सरपंच की हवेली की तरफ आ गया । उसने देखा हवेली अभी भी अच्छी स्थिति में थी लेकिन कुछ अजीब तरह की खामोशी थी उसके आसपास । कुछ देर वहां खड़ा रहा और घर लौट आया ।
अगली शाम वो फिर उस हवेली के सामने से गुज़रा । हवेली के थोड़ा ही आगे एक घास के छप्पर लगी चाय की दुकान थी रमुआ वहीँ बैठकर चाय पीने लगा ।
तभी उसने देखा 3 लड़के उसके ठीक सामने लकड़ी की बेंच पर बैठ गए । एक बोला ' आती ही होगी अभी वो । समय तो हो गया ।"
तभी दूर से एक युवती आती दिखाई दी । तीनों उठे और उस युवती की तरफ बढ़ गए । वो तीनों जब उस युवती के एकदम सामने आ गए तो वो लड़की खुद को बचाने के लिए इधर उधर मुड़ रास्ता तलाशने लगी । लड़कों ने कुछ सड़क छाप बातें कही और चले गए । रमुआ मारे गुस्से के अपनी जगह से खड़ा हो गया और उस युवती की तरफ बढ़ा । जब वो उस युवती के बिलकुल सामने आ गया तो उसने उसका चेहरा देखा और देखते ही हैरान हो गया । उसके माथे पर पसीने की बूँदें आ गई । उसका शरीर कांपने लगा । वो युवती हूबहू बेला जैसी दिख रही थी । इसके पहले कि रमुआ कुछ संभल पाता वो युवती हवेली में चली गई ।
रमुआ धीरे धीरे घर लौट आया मगर उसे कमजोरी लगने लगी । उसने नौकर से सारी बात कही तो नौकर बोला " साहब जी वो लड़की अहिल्या है प्रताप सिंह की नातिन । प्रताप सिंह जी की एक ही औलाद थी बेला ।" रमुआ थी सुनकर चौंक गया था । नौकर आगे बोला " कहते हैं बेला का चक्कर गाँव के तबेले वाले रामलाल के लड़के से था । ये अहिल्या उसी बेला की बेटी है । प्रताप सिंह को जब पता चला कि बेला रामलाल के बेटे रमुआ के कारण माँ बनने वाली है तो उसने रामलाल और उसके बेटे को मारने का फैसला किया लेकिन दिनों भाग निकले । रामलाल पड़ोस के गाँव में मंदिर में 2 साल छुपकर रहा और बाद में बहुत बीमार होकर चल बसा । रमुआ की कोई खबर नहीं मिली । कुछ लोग कहते हैं प्रताप सिंह के आदमियों ने उसे मारकर जंगलों में फेंक दिया । कुछ कहते हैं उसने नदी में डूबकर जान दे दी । बेला को प्रताप सिंह ने बच्चे को जन्म देने दिया । उसे लड़की हुई । लेकिन बेला लड़की को जन्म देने के बाद बहुत बीमार रहने लगी । उसमें ज़िंदा रहने की इच्छा शक्ति ख़त्म हो गई थी । अंतिम सांस लेते वक़्त उसने खुद का गुनाह कबूलते हुए कहा कि रामलाल और रमुआ दोनों बेकसूर हैं और ये सब उसकी ख़ुद की बदनीयत का परिणाम है । गाँव के लोगों को बहुत अफ़सोस हुआ और प्रताप सिंह को भी । प्रताप सिंह अपनी नातिन अहिल्या की बहुत देखरेख करने लगा । खूब लाड़ करता । एक दिन प्रताप सिंह शहर से गाँव आ रहा था कि उसकी जीप ट्रक से टकरा गई और वो वहीँ ख़त्म हो गया । गाँव के लोगों ने ही अहिल्या की जिम्मेदारी उठाई उसके बाद । लेकिन अब पहले जैसा समय नहीं रहा था । कुछ लोग अहिल्या को बहला पुसलाकर उसकी दौलत हथियाने लगे । जब तक अहिल्या कॉलेज जाने जितनी हुई गाँव के ही एहसान फरामोश लोगों ने उसकी सारी दौलत हड़प ली । अब अहिल्या घर में ट्यूशन पढ़ाती है बच्चों को और अपना गुज़ारा करती है । हाँ हवेली अभी तक अच्छी हालत में है और उसी के पास है । गाँव में कई मजनूँ किस्म के लड़के उसे छेड़ते हैं परेशान करते हैं लेकिन वो किसी से कुछ नहीं कहती । खामोश रहती है और अपने काम से काम रखती है । बेकसूर को भी कैसी सज़ा मिलती है न बाबू साहब ।" रमुआ एक गहरी साँस लेकर चुप हो गया । उसे सारी घटना सुनने के बाद बहुत दुःख हुआ । रात भर रमुआ अहिल्या के बारे में ही सोचता रहा जो कि बदकिस्मती से उसकी बेटी है ।
अगले दिन वो उसी वक़्त चाय की दूकान जाकर बैठा जब अहिल्या कॉलेज से वापस लौटती । फिर वह हुआ वो ही आवारा लड़के वहां आ जुटे । अहिल्या के आते ही फिकरे कसने शुरू कर दिए उन्होंने । रमुआ की सहनशक्ति जवाब देने लगी । वो अपनी जगह से उठा और जो लड़का सबसे ज्यादा बोल रहा था उसके गाल पर एक के बाद एक तीन थप्पड़ जड़ दिए । वो लड़का इस अचानक हमले से लड़खड़ा गया । उसके साथी भी घबरा गए और वहाँ से भाग खड़े हुए । अहिल्या यह सब देख रही थी लेकिन लड़कों के भाग जाने के बाद वो अपने घर में चली गई और रमुआ आरा मिल लौट आया ।
इसके बाद अगले एक सप्ताह तक रमुआ उसी समय चाय की दूकान पर गया लेकिन वो लड़के कभी दिखाई नहीं दिए । रमुआ खुश हो गया । एक दिन रमुआ गाँव के मंदिर में दर्शन कर बाहर निकल रहा था कि उसका सामना अहिल्या से हो गया । वो मंदिर में आ रही थी । दोनों की नज़रें मिली । अहिल्या ने रमुआ की तरफ कृतज्ञता भरी आँखों से देखा और बोली " आपका किन शब्दों में धन्यवाद करूँ आपने दो साल की यातनाओं को समाप्त करवा दिया ।"
रमुआ बोला " अब तुम्हें घबराने की कोई जरुरत नहीं है बेटी । वो आवारा लड़के अब यहां नहीं फटकेंगे।"
अहिल्या बोली " आप किस किस को रोकेंगे । ये नहीं तो कोई और आ जाएगा । " रमुआ ने अहिल्या के सर पर हाथ रखते हुए कहा " मेरे रहते कोई तुम्हें तंग नहीं करेगा। तुम निश्चिन्त रहो ।" अहिल्या तसल्ली भरे चेहरे के साथ घर चली गई ।
एक दिन रमुआ उसी दुकान पर चाय पीने के लिए बैठ ही रहा था कि उसे अहिल्या आती हुई दिखी । वो खड़ा ही रहा । अहिल्या ने उसे प्रणाम कहा और बोली " आज की चाय आप मेरे घर पिएंगे तो मुझे बहुत ख़ुशी होगी।" रमुआ ना नहीं कह सका ।
रमुआ बरसों बाद आज प्रताप सिंह की हवेली में दाखिल हो रहा था । उसकी आँखों के सामने प्रताप सिंह और बेला के चेहरे घूमने लगे । अहिल्या ने रमुआ को बैठक में बैठने को कहा और खुद चाय बनाने रसोई में चली गई । एक अजीब सी ख़ामोशी थी घर में । रमुआ को लेकिन खामोशी महसूस नहीं हुई उसे कभी प्रताप सिंह की तो कभी बेला की आवाज़ें सुनाई देने लगी । उसे घबराहट महसूस होने लागु और चक्कर से आने लगे । अहिल्या चाय लेकर लौटी और रमुआ को पसीने से भीगे हुए और घबारहट के चेहरे के साथ देखा तो वो डर गई । उसने तुरंत रमुआ को पानी का गिलास दिया और खिड़की खोल दी । खिड़की खुलते ही तेज हवा भीतर आई और रमुआ इस खुलेपन से सामान्य होने लगा । दोनों चाय पीने लगे । अहिल्या ने हिचकिचाकर पूछा " आप की तबियत को अचानक क्या हो गया था? आप ठीक तो है ?" रमुआ कुछ देर चुप रहा । चाय ख़त्म कर के बोला " हाँ अब मैं ठीक हूँ । मुझे अब घर जाना चाहिए । मेरा नौकर चिंता कर रहा होगा ।" अहिल्या ने सहमति में अपना सर हिला दिया । रमुआ जब कमरे से बाहर निकलने को हुआ तो उसे दीवार पर लगी एक तस्वीर दिखाई दी । इस तस्वीर में प्रताप सिंह अपनी बेटी बेला के साथ था । शहर में किसी मेले में खिंचवाई तस्वीर लग रही थी । रमुआ उस तस्वीर को देखता हुआ बाहर निकल गया ।
रमुआ अहिल्या से इस मुलाक़ात के बाद परेशान रहने लगा । वो हर वक़्त सोच में डूबा रहता । उसे न जाने क्यों अहिल्या से हमदर्दी पैदा हो गई थी और उसे उसकी चिंता सताने लगी । वो सोचने लगा कि जो हुआ उसमे अहिल्या का क्या कसूर है? वो क्यों इस तरह अकेली और दुखी जीवन जिए? जो भी हुआ वो शर्मनाक था लेकिन दुर्भाग्य से ही सही अहिल्या आखिर उसकी बेटी ही है ।
वो अक्सर अहिल्या से मिलने चला जाता । अहिल्या भी रमुआ का इंतज़ार करती । ऐसे ही समय गुजरता गया । एक दिन रमुआ को खबर मिली कि अहिल्या अचानक बीमार हो गई है । उसे तेज बुखार है कई दिनों से । रमुआ लगभग दौड़ते हुए हवेली गया । अहिल्या बेहद कमजोर दिख रही थी । पड़ोस के घर की एक बूढ़ी महिला उसके पास बैठी थी । उसी औरत ने रमुआ से कहा " इसे शहर में किसी डॉक्टर को दिखा दो साहब नहीं तो ये भी अपनी माँ की तरह बेसमय इस दुनिया से ना चली जाय।" रमुआ यह बात सुनकर घबरा गया । उसने अहिल्या के सर पर हाथ रखा और बोला " ऐसा हरगिज़ नहीं होगा । मैं अभी इसे शहर लेकर जा रहा हूँ ।" रमुआ जल्दी से आरा मिल पहुँचा । आरा मिल का अपना एक टेम्पो था वो उसी टेम्पो को लेकर हवेली आ गया । अहिल्या की टेम्पो में बिठाया और ड्राईवर से शहर चलने को कहा ।
शहर में अपनी जान पहचान के डॉक्टर के अस्पताल पहुंचकर रमुआ ने अहिल्या को दाखिल करा दिया ।
अहिल्या का तुरंत इलाज शुरू हो गया । रमुआ अस्पताल में ही रुक गया । करीब एक सप्ताह के इलाज और देखभाल से अहिल्या बिलकुल ठीक हो गई । विकास भी इस दौरान एक दिन अस्पताल आया । रमुआ से जब उसने अहिल्या के बारे में सब पूछा तो रमुआ ने उसे सब सच सच बता दिया । विकास बोला " रमेश काका आप इंसान के भेष में देवता हो । जो काम आपने किया है उसके बारे में किसी का सोचना भी नामुमकिन है । यह सब कल्पना से परे हैं । मुझे आप पर आज फक्र हो रहा है । मैं अहिल्या से मिलना चाहता हूँ अगर आपकी इज़ाज़त हो तो " रमुआ विकास के साथ अहिल्या के कमरे में गया । उसने विकास का परिचय दिया । अहिल्या विकास से बोली " मैं इन्हें नहीं जानती लेकिन इन्होंने देवदूत बनकर मेरी जान बचाई है । मुझे नई ज़िन्दगी दी है । ये एहसान मैं जीवन भर नहीं भुला सकुंगी ।" रमुआ बोला " ये कोई एहसान नहीं है । इंसानियत का फ़र्ज़ अदा किया है मैंने और कुछ नहीं ।"
विकास बोला " काका आप इन्हें लेकर अपने घर चलें । दो चार दिन घर पर आराम करेंगी तो पूरी तरह ठीक हो जायेगी फिर आप दोनों देवताल लौट जाईयेगा ।" रमुआ मान गया ।
रमुआ अहिल्या के लिए दवाईयां और कुछ फल लेने बाजार गया हुआ था । विकास अहिल्या के कमरे में आया । अहिल्या पलंग पर बैठी हुई खिड़की के बाहर देख रही थी । विकास के आते ही वो उठने को हुई तो विकास ने उसे इशारे से बैठे ही रहने को कहा ।
विकास ने रमुआ के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को विस्तार से बताया । अहिल्या रमुआ के बारे में सुनकर आत्मविभोर होते हुए बोली " देवता जैसे इंसान है लेकिन अकेले ही हैं इस दुनिया में । कितना अन्याय है ये । ऐसे महान इंसान को भी भगवान् अकेले रखे हुए हैं ।" विकास कुछ देर ख़ामोश रहा और गहरे चिंतन में डूबा रहा । कुछ देर बाफ उसके चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे उसने कोई फैसला कर लिया हो । वो अहिल्या से बोला " मैं अंकलजी के अतीत के बारे में सब कुछ जानता हूँ । अगर आप में सुनने की शक्ति है तो मैं उनके बीते हुए वक़्त के बारे में आपको सब कुछ बताना चाहता हूँ क्योंकि जैसे अंकलजी अकेले हैं वैसे आप भी बिलकुल अकेली हो । अकेलापन क्या होता है ये आप दोनों से बेहतर भला और कौन जान सकता है।" अहिल्या एक पल को चौंकी फिर बोली " आप जरूर बताएं । मेरे से बुरा अतीत तो होगा नहीं । मैं सुन सकती हूँ सब ।" विकास पलंग के सामने की कुर्सी पर बैठ गया और उसने अहिल्या को सब कुछ सच सच बतला दिया शुरू से लेकर अंत तक । अहिल्या जैसे जैसे रमुआ के साथ हुई घटनाएं सुनती गई उसकी आँखें भीगती चली गई । ये आंसू कब उसे सुबक सुबक कर रोने पर मजबूर कर गए उसे पता ही नहीं चला । जब विकास सब कुछ कह चुका तो अहिल्या इतना रो चुकी थी कि अब और आंसुओं के बहने की कोई गुंजाईश बाकी नहीं बची थी और सिसकियों की आवाज़ें उस खामोश कमरे में गूंज रही थी ।
विकास ने अहिल्या को पानी का गिलास पकड़ाया । अहिल्या पानी पीकर और अपने चेहरे को पौंछकर कुछ देर शांत बैठ गई । विकास ने देखा अहिल्या की दोनों आँखें बंद थी । थोड़ी देर बाद अहिल्या ने ऑंखें खोली विकास की तरफ देखा और बोली " विकास बाबू अब तो आप भी मेरे लिए किसी देवता से कम नहीं रहे । आपने मेरे पिता से मुझे मिलवा दिया जिनके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी । मुझे सिर्फ यह मालूम था या बतलाया गया था कि वे इस दुनिया में नहीं है और मेरी माँ की मौत और मेरे जन्म के लिए वे ही जिम्मेदार है । आज मुझे सारी हकीकत पता चल गई आपके द्वारा । आपने दो इंसानों को जीवन जीने के लिए मक़सद तलाश कर दे दिया । अब मैं अपने बापू के घर ही जाकर रहूंगी । उस पाप की हवेली में मेरा दम बरसों से घुट रहा है अब मैं उस कालकोठरी को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दूंगी । मैं अब बापू की सेवा करुँगी । उन्होंने अपने जीवन में कोई सुख नहीं पाया लेकिन अब मैं उन्हें दुनिया के सभी सुख उन्हें दूंगी । अब वो अकेले नहीं है उनकी बेटी उनके साथ है और अंतिम सांस तक उनके साथ ही रहेगी ।"
विकास की आँखें ख़ुशी से छलछला उठी । उसने मन ही मन खुद से कहा - मैने कोई गलत काम नहीं किया अहिल्या को अंकलजी के अतीत के बारे में कहकर । दो हर तरह से अकेले इंसान आपस में मिल गए । कितना अनोखा बंधन हुआ है ये । आज भगवान ने मुझसे एक बहुत ही पुण्य का काम करवा लिया । मेरा जीवन सफल हो गया ।
विकास ने अहिल्या से कहा " आपके साहस की कोई दूसरी मिसाल नहीं । आपने जो हौसला दिखलाया है अपने बापू को अपनाने का उसे ज़माना याद रखेगा । भगवान् आपके इस कदम के बदले में आपको बहुत ही सुख भरा जीवन अब देगा । आप अंकलजी को लेकर अपने गाँव जाएँ । मैं यहाँ से कुछ आदमी भिजवा दूंगा जो अंकलजी के उजड़े और टूटे हुए पुश्तैनी घर को फिर से बना देंगे । आप दोनों उसी घर में रहिएगा ।" अहिल्या ने अपने हाथ जोड़े और विकास से बोली " आप देवता ही नहीं भगवान् हो हमारे लिए ।"
रमुआ जब घर वापस लौटा तो विकास ने उसे सब कुछ बता दिया कि वो अहिल्या से सब कह चुका है और अहिल्या उसी के साथ रहेगी और वो उसके पुश्तैनी घर को फिर से बनाने का फैसला भी कर चुका है । रमुआ की ख़ुशी का ठिकाना न रहा । वो लगभग दौड़ता हुआ कमरे में गया जहां अहिल्या बैठी थी । रमुआ जैसे ही कमरे के दरवाजे पर आकर खड़ा हुआ अहिल्या ने उसे देखा और बोली " बापू "
रमुआ अपने लिए बापू सुनकर जैसे निहाल हो गया । वो आगे बढ़ा और अहिल्या को अपने सीने से लगाते हुए कहा " बिटिया । आज मैं धन्य हो गया । तुमने अपने अभागे बापू को अपना लिया ।" अहिल्या ने रमुआ के आंसू पौंछे और बोली " चलो बापू अब अपने घर चलते हैं अपने गाँव चलते हैं ।"
रमुआ और अहिल्या जब अपने गाँव रवाना हुए तो विकास तब तक अपना हाथ हिलाकर दोनों को जाते देखता रहा जब तक कि दोनों उसकी आँखों से बहुत दूर होकर ओझल नहीं हो गए ।
रेडियो पर गाना बज रहा था - वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ ...........