उम्मीद
पृथ्वी सिंह को लगा जैसे उसके क़दमों के नीचे से ज़मीन खिसक गई है। उसकी आँखों के सामने अँधेरा नज़र आने लगा और वो लड़खड़ाते हुए ज़मीन पर लगभग गिर पड़ा। उसकी पत्नि सरोज ने दौड़कर उसे सम्भाला और सहारा देकर पृथ्वी सिंह को कुर्सी पर बिठाया। पृथ्वी सिंह की बेटी चित्रा भागकर पानी लाइ और पृथ्वी दो घूँट पीकर कुछ संभला।
हुआ ये था कि पृथ्वी सिंह ने अपने बचपन के मित्र हरी सिंह चौधरी की इकलौती बेटी सुमन कंवर के साथ अपने बड़े बेटे अर्जुन सिंह का रिश्ता बचपन में ही पक्का कर दिया था। अर्जुन सिंह को इस बात की जानकारी नहीं थी और जब अर्जुन सिंह अपनी पढ़ाई पूरी करने एक बाद नौकरी पर लगा तब उसे पृथ्वी सिंह और सरोज ने सारी बात बताई। इस बीच अर्जुन सिंह जहां नौकरी कर रहा था वहीँ पर काम कर लड़की सुधा से उसकी दोस्ती हुई और बाद में दोनों में प्रेम हो गया। दोनों ने तय कर लिया कि वे जल्दी ही अपने घरवालों को बतलाकर आपस में शादी कर लेंगे।
इस बार जब अर्जुन यही बतलाने के लिए कुछ दिनों की छुट्टी लेकर अपने गाँव आया और जैसे ही पृथ्वी सिंह ने उसे सुमन के साथ सगाई की बात बतलाई अर्जुन ने साफ़ मना करते हुए सुधा के साथ अपने रिश्ते और प्रेम की बात कह दी। यही सुनकर पृथ्वी सिंह लगभग बेहोशी की हालत में पहुँच गया। सरोज का रो रोकर बुरा हाल था , वो सोच रही थी कि अर्जुन सिंह ने कितनी आसानी से सगाई की बात ठुकरा दी और किसी सुधा नाम की लड़की , जिसे कि सिवाय अर्जुन के और कोई जानता तक नहीं है शादी की बात कह दी।
अर्जुन का छोटा भाई भानु और बहन चित्रा अपने बड़े भाई के इस जवाब से सिहर गए थे। पृथ्वी सिंह ने खुद को सम्भाला और अर्जुन को समझाने लगा और जान पहचान और शादी सगाई की बातों को पूरी परिपक्वता से तय करने की दुहाई देने लगा ; लेकिन अर्जुन ने उसकी एक नहीं सुनी। अब पृथ्वी सिंह का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और लगभग चीखते हुए बोला " तू इसी बगत ये घर छोड़कर चला जा नालायक। तुझसे मेरी हर उम्मीद थी मगर तूने आज हमारी हर उम्मीद तोड़ दी. अब तेरा इस घर से कोई नाता नहीं बचा. जो औलाद अपने माँ -बाप की नहीं हो सकी वो इस खानदान की क्या होगी। निकल जा इस घर से । " सरोज , भानु और चित्रा सभी बीच बचाव करने लगे लेकिन ना तो पृथ्वी सिंह ने किसी की सुनी और ना ही अर्जुन ने कोई नरमी दिखलाई।
अर्जुन ऊपर कमरे में गया और अपना सामान लेकर वापस नीचे आ गया। चित्रा , ( चित्रा और सुमन बचपन की सहेलियाँ थी ) ने अपने बड़े भाई को शांत होकर सोचने की सलाह दी तो अर्जुन बोला " चित्रा, शादी कोई गुड्डे-गुड्डियों का खेल नहीं है कि किसी का रिश्ता किसी के साथ बाँध दो बिना सोचे समझे और बिना बच्चों से पूछे हुए. ये रिश्ता मैं कैसे मंज़ूर कर सकता हूँ जबकि मैंने आज तक उस लड़की को देखा तक नहीं और ना ही उसने मुझे ही देखा है. ये रिश्ता बेमेल है. मैं जा रहा हूँ. जब भी आप बुलाओगे मैं आ जाउंगा ;लेकिन ये सगाई मेरी तरफ से टूटी समझो और इस घर से रिश्ता मेरी तरफ से कभी नहीं टूटेगा। " अर्जुन अपना सामान लेकर स्टेशन चला गया।
चित्रा से ये सब देखा नहीं गया और वो दौड़ती हुई सुमन के पास गई। चित्रा ने सुमन को सारी बात विस्तार से बता दी. सुमन एक पल के लिए ऊपर से नीचे तक काँप गई लेकिन तुरंत संभलते हुए बोली " वो ऐसा नहीं कर सकते।" सुमन तेज क़दमों से रेलवे स्टे शन की तरफ चल दी क्यूंकि गाडी आने में अभी समय बाकी था । सुमन स्टेशन पहुंची तो अर्जुन प्लेटफार्म पेड़ नीचे खड़ा दिखा। गाँव की परम्परा अनुसार सुमन घूँघट निकाले थी. सुमन अर्जुन सिंह के सामने खड़ी हो गई। अर्जुन चौंका तो सुमन बोली "मैं सुमन हूँ" अर्जुन ने तुरंत अपना चेहरा दूसरी तरफ करते हुए कहा " देखिये सुमन जी , मेरा और आपका कोई ताल्लुक नहीं है। जो रिश्ता दोनों के घर वालों ने किया है वो किसी भी हालत में मानने और निभाने लायक नहीं है। वैसे भी बाबासा ने मुझे घर से बेदखल कर दिया है और मैं वापस दिल्ली जा रहा हूँ " सुमन ने जवाब दिया " कोई भी पिता अपने बेटे से इस तरह के जवाब को सहन करने की स्थिति में नहीं हो सकता और बाबासा के साथ भी यही हुआ है. जिस तरह आप इस रिश्ते की बात से चौंके , उसी तरह वे भी चौंके और हैरान हुए होंगे। वे हमसे उम्र में बड़े हैं। हमारे जन्मदाता है , उन्हें हक़ है हमें डांटने का ; हमें समझाने का । मैं बाबासा से आपकी तरफ से माफ़ी मांग लुंगी , मुझे उम्मीद है वे हमें क्षमा कर देंगे। आप मेरे साथ घर चलिए" अर्जुन सुमन की बातें सुनकर मन ही मन सोचने लगा कि गाँव में रही सुमन एक बहुत ही पढ़ी लिखी और बड़ी उम्र की शहरी महिला की तरह बातें कर रही है। लेकिन अगले ही पल उसने बेरुखी से सुमन से कहा " मैंने बाबासा से साफ़ शब्दों में इस रिश्ते को तोड़ देने की बात कह दी है, मेरा फैसला अटल है। आप अपने घर जाएँ , इस तरह सभी के सामने एक पराये मर्द से बात कर मर्यादा ना तोड़ें " सुमन की आँखें छलछला उठी , उसने भर्राई आवाज में कहा " आप मुझे पराई समझ सकते हैं लेकिन मैं नहीं। हम अक्सर जोश में खुद को सही समझकर अपनों से बड़ों की बातों को हवा में उड़ा देते हैं , लेकिन अंत में पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगता। आप आज जा रहे हो , लेकन देखियेगा ये घर ही आपका घर रहेगा और ये रिश्ते ही रहेंगे। मुझे पूरी उम्मीद है आपको लौटकर आना ही पडेगा " अर्जुन ने सपाट चेहरे के साथ कहा " उम्मीदों पर वे लोग जिया करते हैं जिन्हें अपने आप पर भरोसा नहीं होता और भगवान् भरोसे उम्मीद के सहारे ज़िंदगी बिता देते हैं। " सुमन मुड़ी और यह कहते हुए चली गई " ना मेरी उम्मीद झूठी , ना मैं किसी के भरोसे लेकिन मेरा भगवान् सच्चा और मेरा विश्वास अडिग है। यही भगवान् और यही विश्वास मेरी उम्मीद है। " अर्जुन सुमन की इस आत्मविश्वास से भरी बात से सहमा और लेकिन फिर पल इंजिन की आवाज सुनकर सामान उठाकर आगे बढ़ गया। गाडी चल दी और सुमन गाड़ी के पीछे उड़ती धूल में अपने किस्मत को तलाशने लगी।
अर्जुन ने दिल्ली लौटने के बाद सुधा को पूरी बात बता दी। सुधा ने अर्जुन का हौसला बढ़ाते हुए कहा " जो भी हुआ वो सब मेरी वजह से हुआ है। इन सब का कारण मैं ही हुँ. लेकिन मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ूंगी , चाहे कुछ भी हो जाए। " अर्जुन को सुधा की इस बात से अपनी हिम्मत बढ़ती हुई लगी.
इस घटना के एक महीने के बाद अर्जुन और सुधा ने कोर्ट में शादी कर ली । अर्जुन इस वक़्त तक एक कमरे के एक छोटे मकान में रह रहा था लेकिन शादी के बाद तुरंत उन्होंने दो कमरों का एक नया मकान किराए पर ले लिया। दोनों वहीँ साथ साथ रहने लगे।
दोनों का वैवाहिक जीवन आरम्भ हुआ और पांच महीने तक खुशनुमा सफ़र जैसा रहा। सब कुछ सपनोँ की दुनिया जैसा लग रहा था। सुधा को अचानक एक दूसरी कंपनी में करीब दोगुनी तनख्वाह बेंगलोर में एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी का ऑफर मिला। सुधा ने अर्जुन को यह बात बताई और अपने बेंगलोर जाने के फैसले के बारे में बताया। अर्जुन ने सुधा को मना किया कि जब दोनों मिलकर अच्छा कमा लेते हैं दूर जाकर ये नौकरी करने की कोई आवश्यकता नहीं है. लेकिन सुधा ने ये तर्क दिया कि जब तक बच्चे नहीं हो जाते ऐसे हर मौके का फायदा उठा लेना चाहिए। यही समय है अधिक से अधिक पैसे कमाने का. इस बात को लेकर दोनों में तनातनी हुई लेकिन आखिर में सुधा ने अर्जुन को मना ही लिया। अर्जुन ने भारी दिल और भीगी आँखों से सुधा को बंगलौर की फलाईट में बै ठाया। सुधा की आँखें भी भर आई. अर्जुन कुछ दिन काफी परेशान रहा मगर फिर धीरे धीरे सब सामान्य होता चला गया.
एक दिन अर्जुन सिंह अपने पुराने घर के मालिक के ऑफिस गया क्यूंकि वो मकान मालिक भी अर्जुन के गृह जिल्हे का रहनेवाला था. अर्जुन को देखते ही वो बोला " कहाँ हो कंवर सा , एक हफ्ते से कोशिश कर रहा था मैं तुम्हारे नए पते के बारे में पता लगाने की । ये लो तुम्हारे घर से कोई चिट्ठी आई पड़ी है एक हफ्ता हुआ है । तुमने अपने नए पते की खबर घर दी थी क्या?"
अर्जुन ने बात सम्भालते हुए कहा " खबर तो दी थी , हो सकता है , बाबासा भूल गए होंगे। चलो धन्यवाद। मैं अब चलता हूँ "
अर्जुन ने घर आकर जब चिट्ठी खोली तो पता चला वो उसके छोटे भाई भानु ने लिखी थी. उसमे लिखा था कि वो यानि भानु सबसे छुपाकर ये चिट्ठी लिख रहा है । चित्रा की शादी तय हो गई है और बाबासा और माँ ने अर्जुन को बुलाने के लिए मना किया है। अर्जुन शादी की तारीख पढ़कर हैरान रह गया। आज से केवल दो दिन बाद ही शादी की तारीख है ! वो तुरंत अपने बॉस के घर गया और सारी बात बताकर, छुट्टी लेकर अगले दिन सवेरे ही ट्रेन से अपने गाँव रवाना हो गया. उसे जो जल्दी जल्दी में सूझा उसी हिसाब से घर में सभी के लिए कपडे खरीद लिए.
अर्जुन को घर आया देख पृथ्वी गुस्से से भर गया । लेकिन अर्जुन के मामा ने उन्हें शांत कर दिया। अर्जुन ने सभी के पैर छुए. भानु और चित्रा अर्जुन को देख बहुत खुश हुए और गले से लग गए। शाम को शादी की एक रस्म थी। अर्जुन ने देखा एक युवती लाल साडी में घूँघट निकाले उसकी माँ के साथ पूरी तन्मयता से काम करने में जुटी हुई है। अर्जुन उसे पहचान गया और उसके माथे पर पसीना आ गया क्यूंकि वो सुमन ही थी। अर्जुन चुपचाप बैठा रहा सारी रस्म के दौरान। सुमन बीच बीच में कनखियों से अर्जुन को देखती रही लेकिन अर्जुन सर झुकाये ही बैठा रहा. रात के खाने के बाद सुमन अपने घर रवाना हुई तब अर्जुन घर के बाहर ही खड़ा था। सुमन उसे देखकर उसके करीब आकर रुकी। सुमन ने कहा " आपने अच्छा किया जो चिट्ठी के मिलते ही आ गए। मैंने ही भानु से कहकर चिट्ठी लिखवाई थी । बाबासा और माझी सा तो अभी तक गुस्से में ही है. लेकिन गाँव में हमारे घर की इज्ज़त बनी रहे इसीलिए मैंने ये कदम उठाया। " सुमन चली गई और अर्जुन उसे दूर तक जाते हुए देखता रहा और सोचता रहा कि सुमन खुद को अभी भी इस घर की बहू समझ रही है और उसी हिसाब से व्यवहार भी कर रही है। उसे समझ में नहीं आया कि वो आखिर करे तो क्या करे और सुमन से कुछ कहे तो क्या कहे और कैसे कहे?
अगले दिन भानु ने उसे बताया कि सुमन भाभीसा खुद ही घर आई और माँ से बोली कि ये उसका घर है और वो अपने बचपन की सहेली की शादी में अपने कर्तव्य को निभाने आई है। अर्जुन ये सुनकर सोचने लगा कि सुमन उसके लिए एक पहेली बनती जा रही है. वो कुछ भी नहीं समझ पा रहा था सारे घटनाक्रम को। शाम को चित्रा की बरात आ गई । खूब धूमधाम से शादी हो गई. सुमन तमाम रस्मों के निभाने तक चित्रा के साथ साये की तरह से रही । सुबह चित्रा की विदाई हुई। माहौल बहुत भारी हो गया. चित्रा अर्जुन के पैर छूने के बाद फफक कर रो पड़ी. अर्जुन भी खुद को रोक नहीं पाया , बचपन में वो चित्रा को गोदी में उठाये पूरे घर में घूमा करता था और उसके एक आंसू पर बाबासा से लड़ाई कर लेता था. ये सब दोनों को याद आने लगा.
विदाई के बाद अर्जुन घर की छत पर आकर खड़ा हो गया और गाँव देखने लगा. सुबह का वक़्त था। बच्चे स्कूल जा रहे थे। उसे बचपन के दिन याद आने लगे। तभी सुमन चाय लिए आई और बोली " चाय पी लीजिये , कुछ हल्का हो जाएगा मन. बेटी की विदाई का दिन माँ -बाप की ज़िंदगी में सबसे भारी और दुःख वाला दिन होता है. उनके शरीर का एक हिस्सा जैसे अलग हो जाता है. माँ - बाप ही अपनी औलाद कि कमी को महसूस कर सकते हैं. बेटी अपने ससुराल जाती है और बेटा शादी के बाद अपनी दुनिया में. रिश्तों की दुनिया बहुत बड़ी है. इसे समझने और निभाने में उमर बीत जाती है लेकिन फिर भी कमी रह जाती है ।" अर्जुन सुमन की बातों का जवाब देने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहा था. अर्जुन चाय पीने लगा , सुमन उस से कुछ दूर खड़ी आसमान की तरफ तक रही थी। तभी हवा का एक तेज झोंका आया और सुमन के सर का पल्लू हवा के साथ उड़कर उसके काँधे पर आकर ठहर गया। सुमन का चेहरा पहली बार अर्जुन के सामने आया था। एकदम साफ़ गोरा रंग , तीखे नाक नख्श और आत्मविश्वास से भरी हुई आँखें। अर्जुन सुमन को देखने लगा तभी सुमन ने चेहरा फिर से घूँघट की ओट में छुपाया और छत से नीचे चली गई.
अर्जुन अगले दिन दिल्ली लौट गया ।
इसी तरह से करीब चार महीने बीत गए। इस दौरान सुधा और अर्जुन आपस में दो बार मिले , एक दूसरे के पास जाकर एक एक बार। दोनों बार अर्जुन ने सुधा से वापस दिल्ली आने की मिन्नत की लेकिन दोनों ही बार सुधा ने एक ही कारण बताया कि दो साल खूब पैसे कमाएंगे बाद में परिवार शुरू करेंगे और खूब ऐश करेंगे । अर्जुन परेशान रहने लगा। जब कभी दोनों की आपस में फोन पर बात होती तो अर्जुन अपना आपा खो देता। अर्जुन को ऐसा लगने लगा कि कोई अनजानी दीवार उन दोनों के बीच बनती जा रही है. एक दिन सुबह सुधा का फोन आया जो अर्जुन की ज़िंदगी की तमाम उम्मीदों को तिनके की तरह उड़ा गया। सुधा ने उसे फोन पर कहा " सुनो अरु , एक लाइफटाईम ऑफर दिया है आज बॉस ने । डेनमार्क में हमारे हेड ऑफिस में मेरा बॉस प्रोमोट होकर जा रहा है दो साल के लिए। उसने मुझे भी डबल प्रोमोशन और डबल इन्क्रीमेंट का ऑफर दिया। मैंने तो तुरंत हाँ कर दी है। अरु , सिर्फ दो साल और ढ़ेर सारा पैसा। परिवार शुरू हम और दो साल बाद कर लेंगे। ज़िंदगी कौनसी भागी जा रही है। तुम भी इस खबर से खुश हो ना अरु ?"
अर्जुन का सर घूमने लगा , एक ही साँस में सुधा का ये सारी बात कह देना और बिना उस से पूछे इतना बड़ा फैसला कर लेना उसे आगबबूला कर गया। अर्जुन सिंह लगभग चीखते हुए बोला " तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है सुधा। मेरे से पूछे बिना इतना बड़ा फैसला कर लिया ! तुम्हारी ज़िंदगी में मेरी कोई अहमियत है या नहीं? तुम इस तरह से कैसे अकेली जा सकती हो और वो भी बिना मेरी हाँ के ? मैं कुछ नहीं रहा और तुम्हारा बॉस तुम्हारा सब कुछ हो गया ! ज़िंदगी है या कोई मज़ाक ? तुम कहीं नहीं जा रही हो और ये नौकरी छोड़कर दिल्ली आ रही हो , ये मेरा फैसला है।" चित्रा ने बिफरते हुए अर्जुन को जवाब दिया " अरु , तुम मेरी तरक्की से जलने लगे हो। मैंने ये फैसला हम दोनों के भविष्य को देखते हुए किया है. मेरा बॉस सिर्फ बॉस है , तुम शक की नज़र से मत देखो उसे।" अर्जुन और चित्रा में तकरार बढ़ गई फोन पर बात करते करते ही और मामला यहाँ तक पहुँच गया कि चित्रा ने तेज आवाज़ में अर्जुन से कह दिया "तुम रहोगे गाँव के गँवार ही ना , तुम क्या जानोगे भविष्य की कीमत । तुम खुद एक स्वार्थी इंसान हो और मुझे स्वार्थी कह रहे हो ! तुमने अपने स्वार्थ के लिए अपने माँ -बाप को छोड़ दिया , गाँव की सीधी सादी और मासूम पत्नि तक को ठुकरा दिया जिसका कोई क़ुसूर भी नहीं था और आज भी अपने स्वार्थ के लिए मुझे नौकरी छोड़ने के लिए कह रहे हो। तुम्हें हमसफ़र नहीं एक घरेलु पत्नि चाहिए , मेरे भी ख्वाब है मेरी भी कोई उम्मीद है तुम से। तुम मुझसे उम्मीद कर सकते हो कि मैं तुम्हारे कहे कहे करती रहूँ , तो क्या मैं तुमसे इतनी भी उम्मीद ना करूँ कि सिर्फ दो साल मुझे नौकरी करने दो , पैसे कमाने दो। मैं डेनमार्क जाउंगी तो जाउंगी। तुम्हें जो सोचना है सोच लो। मैं सुमन नहीं हूँ जो एक तुम्हारे आने की झूठी उम्मीद में आज भी इंतज़ार कर रही है। तुम्हारी सोच संकुचित है और कमजोर भी " अर्जुन ने गुस्से से फोन पटक दिया।
एक सप्ताह बाद सुधा पहुँच गई. दिल्ली पहुँचने के ठीक दो दिन बाद उसकी डेनमार्क के लिए फला ईट थी । अर्जुन और सुधा के बीच कोई नहीं बातचीत हुई। यहाँ तक कि जरुरी सामान खरीदने सुधा अकेली गई. एक तरह से ये अलगाव की शायद शुरुवात थी।
अर्जुन सुधा को विदा करने एयरपोर्ट गया। सुधा चेक इन के लिए भीतर जाने लगी अर्जुन बो ला " तुम वापस लौटोगी या नहीं ?"
सुधा - "तुम्हें क्या लगता है? "
अर्जुन - " मुझे उम्मीद नहीं रही अब"
सुधा - " रिश्ते उम्मीदों के नहीं भरोसे पर टिके रहते हैं "
अर्जुन - " मुझे अब भरोसा नहीं रहा तुम पर । तुमने उस दिन जो कुछ भी कहा मुझे फोन पर और जिस तरह से एकतरफा फैसला किया तुमने। इसके बाद सब ख़त्म सा लग रहा है। तुमने सच कहा मैंने अपना स्वार्थ देखा। तुमने भी तो अब ऐसा ही फैसला किया है। मैं बेटा होकर भी खून के रिश्ते को नहीं निभा सका ; तुम तो पराई हो ;कोई और घर की से आई हो। हर तरह से अजनबी। मुझे तुमसे कोई उम्मीद रखना खुद को ही धोखा देने जैसा हुआ। जब मैं बेटा होकर भी अपने माँ - बाप को छोड़कर चला आया तो तुम्हारा मुझे छोड़कर जाना कोई गलत नहीं है। सही और गलत तुमने मुझे सिखला दिया। तुम्हारा ये एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा। बस यही उम्मीद करूंगा कि आज के बाद ना मैं स्वार्थी रहूँ और ना ही तुम। स्वार्थ की नींव पर बनी रिश्तों की ईमारतों इसी तरह से भरभराकर गिरा करती है , किसी का कोई क़ुसूर नहीं । अलविदा "
अर्जुन इतना कहकर घर चला आया। अगले दो दिन वो ऑफिस नहीं जा सका। बचपन से लेकर अब तक की तमाम घटनायें याद करता रहा और सारे दिन और सारी रात सोचता रहा। तीसरे दिन जब वो घर से बाहर निकला तो वो बहुत कुछ तय कर चुका था। ऑफिस में अपने बॉस से उसने सब कुछ सच सच बता दिया और नौकरी से इस्तीफे की बात भी कह दी । उसका बॉस बहुत ही सुलझा हुआ इंसान था । उसने अर्जुन से कहा " मैं तुम्हारी मानसिक स्थिति समझ रहा हूँ। तुम्हारा इस्तीफा मेरे पास रहे गा। कल से तुम चाहे तो एक पूरे महीने भर की छुट्टी लेकर अपने घर चले जाओ और अपनी ज़िंदगी को फिर से संवारकर लौट आओ। एक महीने के बाद अपना फैसला मुझे बता देना ।" अर्जुन हाँ में जवाब देकर घर चला आया । शाम को उसने तलाकनामे के कागज़ात सुधा को भिजवा दिए। उसी रात को वो अपने गाँव जानेवाली गाड़ी में बैठ चुका था ।
अर्जुन ट्रेन मे सो नहीं सका। वो यही सोचता रहा कि घरवालों से किस तरह से सामना करेगा और बाबासा से कैसे नज़र मिलायेगा. इसी उधेड़बुन मे उसका गांव आ गया . अर्जुन अपना सामान लेकर घर की तरफ चलने लगा. सुबह का वक़्त था और पृथ्वी सिंह मंदिर से लौटकर आंगन मे बैठा ही था कि उसे अर्जुन सिंह आता दिखाई दिया। एक पल को तो बाप का लाड़ जाग गया लेकिन अगले ही पल वो मुंह फेरकर दूसरी तरफ मुड कर बैठ गया. अर्जुन घर मे दाखिल हुआ , अपना सामान एक तरफ रखा और पृथ्वी सिंह के पैर छुने झुका , पृथ्वी उठा और कुछ दूर जाकर बोला " अब कोई और नया फैसला करने आये हो ?" अर्जुन एकदम ठंडी आवाज़ मे बोला " बाबासा , मैं लौट आया हूँ" पृथ्वी ने एक कुटिल मुस्कान चेहरे पर लाते हुये कहा " क्यूं, उस शहरी मेमसाब ने ठुकरा दिया या तुम छोड़ आये हो ?" अर्जुन ने उसी तरफ ठंडी आवाज़ मे जवाब दिया " मैने अपने सभी गलत फैसलों को सुधारकर सब कुछ छोड़कर घर लौट आया हूँ और आपका हर आदेश मेरे लिये लोहे की लकीर होगा। मुझे सही और गलत सब समझ में आ गया है बाबासा। "
पृथ्वी सिंह ने एक ठहाका लगाते हुए कहा " वो तुम्हारे भविष्य के सपने क्या हुए ? वो नये विचार क्या हुए ? इतनी जल्दी ढह गई नयी विचारधारा की नींव पर खड़ी इमारत ?" अर्जुन बोला " नहीं बाबासा , नयी विचारधारा उतनी गलत नहीं निकली जितना मैं खुद गलत निकला. मेरा स्वार्थ और लालच मेरी नाकामयाबी की वजह बन गये. दोनों सोच को मिलाकर चलता तो आज यूं फिर उसी जगह ना आता जहाँ से सफर शुरू किया था. मैं गलत था . माँ-बाप अपनी औलाद का बुरा कभी नहीं चाहते , लेकिन ये जरूर है कि औलादें उनका बुरा जरूर सोच लेती है कभी कभी जैसा मैने किया. ये सच है कि बचपन मे किये पक्के कर दिए गये इस रिश्ते को ; इस तरह से सगाई और शादी के रिश्ते अक़्सर भावनाओं मे बहकर कर दिये जाते हैं , मुझे सोच समझकर देख भालकर कर हाँ या ना में फैसला करना चाहिये था. जब सब कुछ मेरे साथ ऐसा बीत रहा था कि मैं हर बाज़ी हारते जा रहा था तो सुमन जी की कही एक एक बात मुझे आईना दिखला रही थी और उस आईने मे सुमन जी नज़र आ रही थी. मैने पढ़ाई तो बहुत की बाबासा लेकिन व्यावहारिकता नहीं पढ़ सका. अपनी सोच को बड़ी और साफ नहीं कर सका. सुधा विदेश जा चुकी है हमेशा हमेशा के लिये मैं कल उसे तलाकनामा भेज चुका हूँ. मैं अपनी ज़िंदगी वहीं से आरंभ करूंगा जहाँ से मैं आपको छोड़कर गया था. सुमन जी के साथ अन्याय और गलत व्यवहार के लिए मैं आप से और माँ से क्षमा माँगता हूँ। आप जो भी फैसला करेंगे मुझे वो मंज़ूर होगा। चाहे आप अपनाओ या ठुकराओ। "
सरोज और भानु भी आ चुके थे और अर्जुन की बातें सुन रहे थे . सरोज ने अपने पति को आंख से ईशारा किया , पृथ्वी की आँखें भर कर छलक रही थी उसने अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा और बोला " उस लड़की ने तुझ पर इतने अत्याचार कर लिये और तू हमें खबर भी नहीं कर सका ! तू हम को छोड़कर गया था पगले हमने तुझे थोड़ी छोड़ा था. रही बात सुमन की तो वो तुझे अपनाये या ठुकराए ये फैसला वो खुद ही करेगी , हम नहीं। " सरोज आगे बढ़ी अर्जुन के सिर पर अपने हाथ रखे और बोली " सबसे पहले तू मंदिर चला जा , इस वक़्त सुमन रोज़ाना मंदिर मे पूजा करने जाती है और देर तक वहीं बैठी रहती है. " अर्जुन ने पृथ्वी सिंह और सरोज के पैर छुये , भानु को गले लगाया और मंदिर की तरफ तेज कदमों से चल पड़ा . सुमन पूजा के बाद मंदिर मे ही सीढियों पर बैठी थी . ठंडी बहती हवा सुहा रही थी और इसी से उसने अपनी पलकें मूंद ली और हवा की ठंडक को महसूस करने लगी. तभी एक आहट से उसने आँखें खोली और अर्जुन को सामने खड़ा पाया जो छलकती आँखों से उसे निहारे जा रहा था। सुमन खड़ी हो गई और घूंघट निकालने लगी ; अर्जुन ने आगे बढ़कर उसका हाथ थामा और बोला " तुम्हें घूंघट निकालने की जरूरत नहीं , सिर तो मुझे झुकाना चाहिये . हर तरह से अपराधी मैं हूँ . बाबासा और माँ का तुमने एक बेटी की तरह खयाल रखा है और आगे भी रखोगी इसलिये आज से कोई घूंघट नहीं . मैं बाबासा और माँ से आशीर्वाद लेकर यहाँ आया हूँ अपने साथ घर ले जाने . मैं लौट आया हूँ सुमन . तुम्हारी एक एक बात सच निकली और तुम्हारी ही हर बात से मैने उन तमाम मुसीबतों मे फैसले लिये और लौट आया इसी उम्मीद के साथ तुम माफ कर दोगी. मेरा अपराध बहुत बड़ा है लेकिन तुम्हारा दिल शायद उससे भी कहीं बड़ा है . लेकिन मैं हर सज़ा भुगतने के लिये तैय्यार हूँ और इंतज़ार करने के लिये भी। तुम चाहे ठुकराओ या अपनाओ मुझे हर फैसला मंज़ूर होगा। अपराधी मैं हूँ और सज़ा का हक़दार भी. सिर्फ कहूंगा कि एक आखिरी उम्मीद रखे हुए मैं तुम्हारे पास आया हूँ." अर्जुन ने अपने हाथ जोड़े और बोला " हर सज़ा मजूर है मुझे " सुमन अर्जुन के करीब आकर खड़ी हो गई और बोली " कैसी सज़ा और कैसा इंतज़ार . मुझे उम्मीद थी आप लौटोगे. आप लौट आये हो लेकिन इतने कमजोर भी ना होइये" सुमन ने अर्जुन का हाथ थामा और बोली " चलिये घर चलते हैं." सुमन की उम्मीद टूटी नहीं थी।
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